किशोरावस्था और इस्लाम

किशोरावस्था और इस्लाम

  • Apr 14, 2020
  • Qurban Ali
  • Tuesday, 9:45 AM

किशोरावस्था बचपन और वयस्कता के बीच का सेतु है। किशोर किसी भी समुदाय के भविष्य होते हैं वैसे ही मुस्लिम किशोर इस्लाम का भविष्य हैं। एक किशोर की वास्तविक सुंदरता उसकी नैतिकता और तरीके (अखलाक) में निहित है जो माता-पिता द्वारा उसकी परवरिश का परिणाम है। लेकिन किशोर जीवन की सबसे संवेदनशील अवधि है क्योंकि हार्मोन के साथ साथ व्यव्हार भी बदल रहा होता है और ीालिये किशोर को पता होना चाहिए कि इस बदलाव का कैसे सामना करना है। किशोरों को इस्लामी मूल्यों के बारे में सिखाया जाना चाहिए ताकि वे अच्छे और बुरे कामों में अंतर कर सकें। हमारे अल्लाह के नबियों के जीवन से कई उदाहरण हैं जो किशोर अवस्था में भी उनके परिपक्व व्यवहार को दर्शाता है। इस्माईल (अलैहिस सलाम) या हज़रत अली (अलैहिस सलाम) या हज़रत हुसैन (अलैहिस सलाम) के अलावा कई अन्य ऐसे उदहारण है जिन्होंने इस्लाम के लिए बहुत कम उम्र में ही अपने जीवन का बलिदान कर दिया और हमेशा पैगम्बरों द्वारा उन्हें दिखाए गए सही मार्ग का अनुसरण किया। एक युवा या किशोर को इस्लाम के अन्य आदर्श युवाओं और उनके धर्म के प्रति समर्पण के बारे में जागरूक होना चाहिए। आज के युग में इंटरनेट के माध्यम से चीजें बहुत आसानी से स्वीकार्य हैं, लेकिन इस्लामी परिप्रेक्ष्य में हमारे अच्छे या बुरे के लिए इसका उपयोग करना हमारे हाथ में है। माता-पिता को अपने बच्चो के काम, उनके व्यवहार और उनके मित्र मंडली पर नज़र रखनी चाहिए ताकि वे अच्छे वयस्क बन सकें क्योंकि इस उम्र में किशोर गलत चीजों की ओर बहुत अधिक आकर्षित होते है इसलिए उसे सही और ग़लत के बीच अंतर करने के लिए पर्याप्त जागरूक होना चाहिए।

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